बचपन खो चूका है कही, किसी पुराने मोड़ पर जवानी भी हे जा रही अपने लड़कपन के छाप छोड़ कर आएगा बहोत जल्द वो मंजर भी ,लोग जिससे अकसर डर जाते है इन तिन हिस्सों में सिमट जाती है जिंदगी और बाद में लोग मर जाते है क्या यही है वो जिंदगी जिसके लिए तुम आतुर थे क्या लगता है तुम्हे, जिंदगी के बस इतने ही दस्तूर है... जब अस्पताल से तुम अपने घर किसी रेशम के कपडे में लिपटकर आते हो जब थोड़े बड़े होकर नर्सरी के यूनिफार्म में सिमटकर जाते हो तब सपनो को देखने की