धर्म की बेड़ियाँ खोल रही है औरत - खण्ड 2

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- साहस भरा सार्थक प्रयास सुषमा मुनीन्द्र सुपरिचित रचनाकार नीलम कुलश्रेष्ठ के साहस, श्रम, जोखिम वृत्ति, एकाग्रता को धन्यवाद देना चाहिये कि इन्होंने धर्म जैसे सर्वाधिक संवेदनशील मसले पर एक नहीं, तीन पुस्तकें सम्पादित कर डालीं - (1) धर्म की बेडि़यॉं खोल रही है औरत - खण्ड एक (2) धर्म के आर-पार औरत (3) धर्म की बेडि़यॉं खोल रही है औरत - खण्ड दो धर्म पर तमाम पुस्तकें लिखी गई हैं लेकिन ‘धर्म की बेडि़यॉं खोल रही है औरत `खण्ड दो में नीलम कुलश्रेष्ठ ने ऐसी सामिग्री का चयन किया है जो धर्म के पक्ष-विपक्ष की परख-पड़ताल करती है साथ