एक नई राह 

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दिन प्रतिदिन शांतनु की बिगड़ती आदतों से परेशान होकर रुचि ने उससे कहा, “शांतनु तुम्हें अपने आप को बदलना होगा। तुम्हारी यह रंगरेलियां मैं सहन नहीं कर पाऊंगी। तुम्हें क्या लगता है, मुझे कुछ पता नहीं ? क्या मेरे साथ कोई कमी रह जाती है, जो बाहर उसे पूरी करने जाते हो।” शांतनु ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम मेरी पत्नी हो रुचि और तुम्हें जो चाहिए वह सब मिल रहा है। घर के बाहर मैं क्या करता हूँ, उससे तुम्हें कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। मैं तुम्हारा ग़ुलाम नहीं, तुम मुझसे मेरी आज़ादी नहीं छीन सकती।” रुचि बौखला गई और उसने