कहते हैं कि होई वही जो रब रची राखा। कभी—कभी ज़िंदगी में ऐसे लम्हे गुजरतें हैं कि पता ही नहीं होता कि ज़िंदगी किस ओर करवट लेगी। हम सोचते हैं कि हमारी ज़िंदगी के फैसले हम ले रहे होते हैं। मगर विधाता ने तो कुछ और ही करिशमा कर दिखाना होता है और यकीन करिए कि विधाता के फैसले हमारे फैसलों से बेहतर होते है और इंसान की तकदीर बदल देते है।मानसी की मोबाइल की बेल से नींद खुली तो देखा सुबह के आठ बज रहे है। सुबह का समय यूं भी पंख लगाकर उड़ जाता है। वह जल्दी से