नुक्कड़ व चौराहों पर चल रही राजनीतिक चर्चाओं को शब्द रूप देने का प्रयास करती 2017 में लिखी हुई एक धारावाहिक रचना !*********************************************************एक देहाती बाजार में नुक्कड़ पर एक चाय की दूकान पर रामू, कलुआ और इदरीश बैठे चाय प़ी रहे थे। सामने से हरीश आता दिखा। उसे देखकर रामू कलुआ से बोला, ”अरे कलुआ ! ये हरीश तो दिल्ली रहता था ना ?”कलुआ बोला, "जी काका ! दिल्ली में ही रहता था यह तो !"इतने में हरीश नजदीक आ जाता है। रामू पर नजर पड़ते ही उनका अभिवादन किया, ”राम राम काका ! कैसे हो ?" “हम तो भले चंगे हैं।