मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 8

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8- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूऔर अविनाश फ़फ़क़ फ़फ़क़ कर रों पड़ा था. मैंने तुरंत उन्हें सम्हाला.. और दिलाशा दी और बिना किसी संकोच के उन्हें मैंने अपने सीने में भींच लिया था..अविनाश हिचकिया लेते लेते रोये जा रहें थे.. और बोले जा रहें थे उनकी बातें सुनकर मेरे भी आंसू आंखों में झलक आए थे..निर्मल जी मैंने अपनों को कभी रोने नहीं दिया उनकी हर इक्छाए पूरी की अपना मन मार के लेकिन पता नहीं मेरी ही किस्मत में उस ऊपर वाले ने ऐसा क्यूं लिखा इतना सब करने के बाद भी मेरे अपनों ने ही मुझसे मुंह मोड़ लिया.. में अपना दर्द