भाग 13 सूर्य उगता है, ढलता है। उसका उगना और ढलना प्रकृति के चक्र का प्रत्यक्ष उदाहरण है। संसार कभी नहीं रुकता। वह गतिमान है। उसकी गति में लाखों-करोड़ों तारे आकाशगंगाएं, ग्रह नक्षत्र अपने रास्ते बदलते हैं। प्रकाशवान होते हैं, धूमिल होते हैं, टूटते हैं। कहीं कोई कार्य नहीं रुकता। नरोत्तम की भी जीवन गति नहीं रुकती। प्रशिक्षण, अखाड़े से जुड़ी जिम्मेदारियां, सतत कुंभ के मेले, नए नागाओं की दीक्षा,, बर्फ के पर्वतों पर, गहरी अंधकारमयी गुफाओं में तपस्या, साधना में बीत गए लंबे-लंबे ग्यारह वर्ष। इन ग्यारह वर्षों में एक बार भी कैथरीन से मुलाकात नहीं हुई। जब नेटवर्क