कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 4

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भाग 4 अगली संध्या कुटिया का फिर वही माहौल। चाय पीते हुए नरोत्तम से रहा नहीं गया। पूछ बैठा -"माता जिज्ञासा बनी हुई है। आप इस वीरान, दुर्गम स्थान में अकेली क्यों और कैसे ?" जानकी देवी कंबल में दुबकी चाय के घूंट भर रही थीं। उनकी आँखों में एक लौ सी दिपदिपाई, क्षणांश में बुझ भी गई। लेकिन उन सूनी, सपाट आँखों में अतीत का एक झरोखा सा खुला। झरोखे में प्रवेश करने की नरोत्तम ने कोशिश की।  "भोले भंडारी की कृपा ......बड़ा साम्राज्य है हमारा हल्द्वानी में। नाती, पोते, बंगला, गाड़ी, खेत, गाय, बैल सब कुछ। रुद्रपुर में