जीवन ऐसा हो (कविताये )

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जीवन ऐसा हो आत्मकथ्य मैं कौन हूँ , क्यों हूँ , किसलिए हूँ , क्या कर सकता हूँ , जैसे प्रश्न जब मन में उमडते घुमडते है। इन प्रश्नो पर विचार करता हूँ और उन विचारों की अभिव्यक्त करता हूँ तो वे विचार स्वमेव ही कविता, कथा या कल्पना का रूप ले लेते है। किसी भी व्यक्ति की रचनाषीलता का आधार उसका बचपन, उसके माता पिता के और समाज के दिए हुए संस्कार होते है तो उनका वर्तमान स्वरूप उसके परिवार, उसके मित्र और उसके जीवन का वर्तमान पर्यावरण होता है। मैं अनुभव करता हूँ