अंत... एक नई शुरुआत - 13

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काश,कितनी संभावनाएं रखता है ये शब्द खुद में न और कितनी बेबसी भी!न जाने कितनी बार हम सब सोचते हैं कि काश ऐसा होता कि काश ऐसा न होता मगर हमारे सोचने से तो सबकुछ नहीं होता न!कुछ बातें तो सिर्फ नियति पर ही निर्भर करती हैं।आज न जाने क्यों मेरा मन बड़ी ही दार्शनिक बातें करने का कर रहा है,कहीं ये आजकल हमारे घर में हर वक्त चलने वाले दार्शनिक टीवी चैनलों का तो असर नहीं!! आजकल ऊषा देवी के कमरे में हर वक्त भक्ति और दर्शन के ही प्रोग्राम टीवी पर चलते रहते हैं और वो सनी को