तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-23) सार्थक- पंखुडी की नो

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अस्मिता जब वापस घर मे आती है तो पाती है कि आदित्य बैड पर आकर सो गया था। अस्मिता मन में -" हे भगवान यह फिर सो गये ।" अस्मिता के दिमाग मे एक खुरापात चल रही होती है वो आदित्य के पास जाकर उसके कानों मे अपने बालों को धीरे धीरे डालते हुये मुहं बंद कर हसने लगती है और इधर आदित्य को गुदगुदी हो रही थी । आदित्य अपना कान तकिये से ढकते हुये -" अस्मि क्यो रही हो आप सोने दो ना।" अस्मिता -" इतनी सुबह हो गयी है धूप तक निकल आई और आप सो रहें