मैं तो ओढ चुनरिया 36 हमारी गली में हमारे घर से चार घर छोङ कर रहती थी मेरी सहेली संतोष । उसकी एक बहन थी कमली और एक भाई चंदन । उसके बाऊजी को मैं मामाजी कहती और माँ को मामी । मामाजी सीधे सादे सज्जन थे । सब्जी की रेहङी लगाते । जो भी बचता , उसी से घर का गुजारा चलता । तीनों भाई बहन पाँचवी तक पढे थे । उसके बाद पढने की गुंजाइश ही नहीं थी । दोनों बहने सलाइयां और ऊन या कोई तकिया लेकर माँ से नमूना सीखने आ जाती ।