पुकारा है ज़िन्दगी को कई बार- लतिका बत्रा

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अपने दुःख.. अपनी तकलीफ़..अपने अवसाद और निराशा से भरे क्षणों को बार बार याद करना यकीनन बहुत दुखदायी होता है। जो हमें उसी दुख..उसी कष्ट को फिर से झेलने..महसूस करने के लिए एक तरह से मजबूर कर देता है। ऐसे में अगर कोई ठान ले कि उसे एक सिरे से उन्हीं सब लम्हों..उन्हीं सब पलों..उन्हीं निराशा और अवसाद से भरे क्षणों को फिर से जीते हुए..उनकी बाँह थाम उन्हें इस इरादे से कलमबद्ध करना है कि उनके जीवन से प्रेरित हो..निराशा के भंवर में फँसे लोग अपने जीवन में आशा की नयी लौ.. नयी किरण जगाने में सफ़ल हो पाएँ।दोस्तों..आज