पार्ट - 2. मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूचच्चा की बातों में दम था...आखिर आज की ज़नरेसान क्या चाहती हैं मैं यही गुनताड़े की उधेड़ बुन में घर आ गया था.. लेकिन मन में चच्चा की तस्वीर और उनकी सोच मुझे बार बार झंझकोर रही थी..मेरे दिमाग में बार बार वो तस्वीरें भी दिख रही थी जिन्हे सही में मैंने भी देखा हैं..मैं हर वर्ग के मोहल्ले में किराएदार रहा हूं जहां मैंने एक बात तो नोटिस की हैं के हर मोहल्ले की गली में कोई ना कोई ऐसा होता हैं जहां निराधार इश्क़ आज भी पनापता हैं.. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौड़ते हुए ज़माने