काश मेरी भी एक बेटी होती

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अपनी व्यस्ततम ज़िंदगी से कुछ वक़्त निकालकर यशोदा बगीचे में शाम को टहलने अवश्य ही जाती थी। बगीचे में नियमित रूप से आने वाले अधिकतर लोग यशोदा को जानने लगे थे। आस पास में रहने वाले बच्चे भी शाम को वहां आते थे। नंदिनी भी अक्सर शाम को वहां आया करती थी। सबसे अलग, शांत और गुमसुम रहने वाली इस लड़की को देख कर यशोदा को हमेशा जिज्ञासा होती कि आख़िर क्या कारण है जो यह लड़की इतनी गुमसुम रहती है; उदासी मानो उसके चेहरे पर स्थायी रूप से बस गई है।   आख़िर कार एक दिन यशोदा ने नंदिनी से बात कर ही ली, "क्या नाम है बेटा