मुझसें अपेक्षायें रखने की योग्यता क्या हैं?

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■ मैं संसार से पूर्णतः विरक्ति के पश्चात भी सांसारिक क्यों और कैसे हूँ?मैं संसार से पूर्णतः विरक्त हूँ यानी सत्य या वास्तविकता के महत्व से पूर्णतः भिज्ञ हूँ परंतु अज्ञान यानी कि संसार के भी महत्व को ज्ञान होने के भी पश्चात भूला नहीं हूँ यही कारण हैं कि अन्य से समय, स्थान और उचितता के अनुकूल होने पर यानी सत्य को असत्य की आवश्यकता होने पर दूसरों से इच्छा करता हूँ; यही हैं जो मुझें संसार से मुक्ति के पश्चात भी उससे दूर नहीं जाने देता। जो केवल सांसारिक हैं; वह संसार में हैं क्योंकि वह सांसारिक बंधन