ज़िंदगी कब और किस ओर करवट बदल ले इसका एहसास पहले से तो हमें कभी भी नहीं हो पाता और जब तक हम इसका एहसास कर पाते हैं ये हमसे हमारा बहुत कुछ लेकर बहुत दूर जा चुकी होती है।हम बस खड़े होकर तो कभी सब कुछ खोकर बैठने की कोशिश करते हुए से इसे चुपचाप जाते हुए देखते रह जाते हैं। समीर,जिसे मैं अपनी ज़िंदगी मानती थी,जिसे मैंने ईश्वर का दर्ज़ा दिया था आज वो मेरा सबकुछ लूटकर जा चुका था।उसनें मेरा मान-सम्मान,मेरा स्वाभिमान और यहाँ तक कि मेरे जीने की वजह भी मुझसे छीन ली थी।उसकी यादें,उसकी मोहब्बत