स्त्री जीवन से गुज़रता भूमंडलीकरण -'उस महल की सरगोशियां’

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[ महेंद्र कुमार, शोधार्थी ] इक्कीसवीं सदी के आरम्भ से ही महिला कथाकारों का मूल स्वर उभरा 'मैं जीना चाहतीं हूँ मैं भी एक मनुष्य हूँ। 'हालांकि पिछली सदी की मन्नू भंडारी की 'स्त्री सुबोधिनी 'व अन्य लेखिकाओं की कहानियों से ये इशारे मिलने शुरू हो गए थे.और किसी क्षेत्र  में हुआ हो या ना हुआ हो महिला कथा लेखन ने बीसवीं सदी की मृगमरीचका से लगते आयाम को सच ही छू लिया है, अपना एक इतिहास रचा है. ऐसा ही है नीलम कुलश्रेष्ठ का ‘उस महल की सरगोशियाँ’ एक कहानी संग्रह है, इसमें कुल बारह कहानियाँ शामिल है। नीलम