आत्मा का वस्त्र

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“अमोदा, तुमसे दूर नहीं रह सकता । ओ.... तुमने क्यों किया ऐसा? मेरे लिए जीने से आवश्यक तुम हो। और अगर तुम मेरे जीवन में नहीं हो तो मृत्यु का वरण ही सही है।”, अनुराग मन ही मन यह सोचता चला जा रहा था। समुद्र की लहरों की तरह सदैव प्रसन्न रहने वाला अनुराग का अंतर्मन आज समुद्र की तरह गहरा हो गया था। अंतर्मन की हलचल किसी को दिखाई नहीं दे रही थी, आँखे थोड़ी सी नम थी लेकिन ह्रदय बहुत ही तीव्र था। गले से तो शब्द नहीं निकल रहे थे, लेकिन मस्तिष्क में इतने विचार आ रहे