उजाले की ओर ----संस्मरण

  • 4.5k
  • 1
  • 1.6k

उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------ नमस्कार स्नेही साथियों इस जीवन -संग्राम में डूबते-उतरते हुए हम कभी निराश होकर टूटने की कगार पर आ जाते हैं | यह जीवन हमें न जाने कितनी बार इस कगार पर ला खड़ा करता है और फिर वहाँ से उठाकर फिर से जूझने के लिए छोड़ देता है | मनुष्य का स्वभाव है ,वह मुड़-मुड़कर देखता है जितना वह पीछे मुड़कर देखता है ,उतना ही अधिक कमज़ोर पड़ता जाता है | कभी परिस्थितियाँ उसे कमज़ोर बना देती हैं और वह अपने सही निर्णय नहीं ले पाता | इसका