उलझन

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उलझन, असल में मैं जब भी इस शब्द को सुनती हूं तो मुझे लगता है किसी ने मानो मेरे सामने आईना रख दिया हो... उलझन और मेरा गहरा नाता है, मेरे पास केवल कुछ दिन ही तो होते हैं जिनमें मैं निश्चिंत सो पाती हूं, इन दिनों सही और गलत के बीच फसी हुई हूं... दिल जो करने को कह रहा है वो गलत है ये जानते हुए भी वही करना चाहती हूं, करती जा रही हूं... रोज सोचती हूँ कि अब बस, आज से खुद को रोक लेना है लेकिन ठीक उसी दिन और तेजी से गलती की ओर