उजाले की ओर--संस्मरण

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नमस्कार स्नेही मित्रों जीवन की गाड़ी अद्भुत --कभी भागे ,कभी खिचर-खिचर चले | कभी बिलकुल बंद होकर अड़ जाए | फिर उसे चलाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है और फिर भी वह थोड़ी दूर जाकर ठिठक जाए तो आखिर क्या करे इंसान ! जी,सभी की गाड़ी रुकती,थमती ,ठिठकती चलती है | कभी उसे धक्का मारना पड़ता है फिर गैराज में भेजना पड़ता है | हमारे चिंतन का भाग एक गैराज ही तो है जो हमारे जीवन की ठिठकी हुई गाड़ी को चिंतन से सफ़ाई करके आगे बढ़ने में मदद करता है | कभी कभी जब