ग्यारह अमावस - 4

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(4)लाश वाली जगह से लौटते हुए गुरुनूर शांति कुटीर पर रुकी। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह और कांस्टेबल हरीश के साथ अंदर गई। अंदर इमारत किसी आश्रम की तरह लग रही थी। गेट से अंदर की तरफ एक रास्ता जा रहा था। उसके दोनों तरफ लॉन था। उसमें पेड़ पौधे लगे थे। कुछ आगे जाने पर एक कंपाउंड था। उसके सामने एक भवन था। चारों तरफ कुटी के आकार के छोटे छोटे भवन बने थे। एक व्यक्ति उन लोगों के पास आया। नमस्कार करके बोला,"मेरा शुबेंंदु है। आप लोगों का यहाँ कैसे आना हुआ ?"कांस्टेबल हरीश ने गुरुनूर का परिचय