नीली तस्वीरें- सुरेन्द्र मोहन पाठक

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1980 और इससे पहले के दशक में जब हमारे यहाँ मनोरंजन के साधनों के नाम पर लुगदी साहित्य की तूती बोला करती थी। एक तरफ़ सामाजिक उपन्यासों पर जहाँ लगातार फिल्में बन रही थी तो वहीं दूसरी तरफ़ थ्रिलर और जासूसी उपन्यासों के दीवानों की भी कमी नहीं थी। एक तरफ़ सामाजिक उपन्यासों के क्षेत्र में गुलशन नंदा को सेलिब्रिटी का सा दर्ज़ा प्राप्त था। तो दूसरी तरफ़ ओम प्रकाश शर्मा, ओमप्रकाश कंबोज, वेद प्रकाश शर्मा और सुरेन्द्र मोहन पाठक के दीवानों की गिनती भी कम नहीं थी। निजी तौर पर उस वक्त मैं वेद प्रकाश शर्मा के लेखन का दीवाना