गाँव गुवाड़- डॉ. नरेन्द्र पारीक

  • 3.9k
  • 1.2k

स्मृतियों के जंगल से जब कभी भी गुज़रना होता है तो अनायास ही मैं फतेहाबाद(हरियाणा) के नज़दीक अपनी नानी के गाँव 'बीघड़' में पहुँच जाता हूँ। जहाँ कभी मेरी नानी गोबर और मिट्टी के घोल से फर्श और दीवारें लीपती नज़र आती तो कभी बकरी से दूध निकलते मेरे नाना। जिनकी बस यही एक स्मृति मेरे ज़हन में अब भी विद्यमान है। कभी गाँव के एक कमरे में बनी लाइब्रेरी से मुझे किताबें ना देने पर लाइब्रेरियन को धमकाती मेरे मामा की बड़ी बेटी नज़र आती। तो कभी एकादशी के मौके पर गाँव के गुरुद्वारे की दीवार के साथ ठिय्या