अंत... एक नई शुरुआत - 5

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कभी-कभी न जाने क्यों कोई पराया हमारे लिए हमारे अपनों से भी ज्यादा खास बन जाता है?जिससे हमारा न तो खून का रिश्ता होता है और न ही जाति या धर्म का मगर फिर भी उसके लिए हमारे दिल में एक विशेष स्थान खुद ब खुद ही बन जाता है और ऐसी ही एक शख्सियत ने मेरी ज़िंदगी में भी दस्तक दी,जो थी स्मिता वशिष्ठ!जैसा नाम वैसी ही सूरत और सीरत थी उनकी।दूध सा गोरा रंग,सुर्ख गुलाबी होंठ,लम्बे चमकीले बाल और आकर्षक कदकाठी।कहने को तो वो बाकी सब अध्यापिकाओं की तरह ही मेरी एक अध्यापिका ही थीं बस मगर सच