पाणिग्रहण संस्कार-बदलता स्वरुप

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पाणिग्रहण संस्कार के बाद पुरुष तथा स्त्री समाज के समक्ष युगल रूप में रह सकते हैं। यह सामाजिक स्वीकृति के साथ जीवन-यापन करने की व्यवस्था है। यह व्यवस्था सभ्यता के विकास के साथ अस्तित्व में आई होगी। हो सकता है कि पहले यह व्यवस्था किसी अन्य रूप में हो। हो सकता है कि पशुओं की तरह मानव भी अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति स्वतंत्र रूप से करता हो। पता चलता है कि उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ने विवाह की संस्था का श्रीगणेश किया था। उन्हें ऐसा लगा था कि पुरुष पुत्र-प्राप्ति के लिए किसी भी स्त्री का चयन