बात इसी रक्षाबंधन की है। एक तो रविवार का दिन और ऊपर से रक्षाबंधन का त्योहार। मन मसोस कर सुबह सुबह उठा और "हमनशी" का अगला भाग अपलोड करके करीब सत्तर किलोमीटर दूर रहने वाली छोटी बहन से राखी बंधवाने निकल पड़ा। देर हो रही थी। इसलिए मुख्य सड़क छोड़ शॉर्टकट रास्ता पकड़ लिया, जो गरीब झुग्गी बस्तियों से होकर गुजरता था। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर प्यास लगी तो एक जगह रुककर गला तर करने लगा। तभी आसपास से किसी बच्ची के जोर–जोर से रोने की आवाज कानों में पड़ी। इधर उधर नजरें घुमाकर देखा तो कोई न दिखा।