कालिदास के काव्य मै मानवीय सौंदर्य

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मानव संवेदना सदैव से ही सौंदर्य की अभिलाषणी रही है । मानव जीवन के समस्त लक्ष्यों में सौंदर्य ही सर्वोपरि है । प्रकृति के कण-कण में सौंदर्य परिव्याप्त है और अनादिकाल से मानव चेतना इस सौंदर्य को आत्मसात करती रही है। इस सौंदर्य उपासना में मानवीय सौंदर्य का स्थान सर्वोत्कृष्ट है। काव्य जगत के लिए भी मानव सौंदर्य ही प्रेरणा का एक अखंड स्रोत रहा है। वैसे तो परम सौंर्यमय उस अनंत सत्ता का लावण्यमय रूप सृष्टि के कण-कण में बिखरा हुआ है और भावना एवं कल्पना लोक का चितेरा कवि उस निखिल सौंदर्य के स्पंदन से आप्लावित होकर नित्य नूतन