किराये के मकान में पूरा जीवन काट देने वाले दीनानाथ, वर्षों से अपने मन में ख़ुद की छत की इच्छा दबाये हुए थे। एक-एक करके जवाबदारी आती ही जा रही थीं, जिन्हें निपटाते हुए अब वह पचपन वर्ष के हो गए थे। आख़िरकार सेवानिवृत्त होने के पहले उन्होंने एक फ़्लैट अपने नाम बुक कर ही लिया। पूरे परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। दीनानाथ के बूढ़े माता-पिता की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उन्हें लग रहा था कि जीते जी वह भी अपनी स्वयं की छत के नीचे कुछ दिन रह लेंगे। दीनानाथ ने बिल्डर को अपने पास की