भवभूति के रूपको का उप जीव्य साहित्य

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संस्कृत नाटकों के विशाल साहित्य पर जिन इने गिने नाटककारो के अमिट चरण चिन्ह विद्यमान है उनमें भवभूति अग्रगण्य है । विशेषत : राम नाटकों के तो वे प्राण हैं उनके नाटकों को पृथक करने पर राम नाटकों की सुदीर्घ परंपरा निर्जीव सी प्रतीत होती है। नाटककार भवभूति की नाट्य प्रतिभा का समुचित मूल्यांकन करने हेतु उनके नाटकीय आधार तत्वों एवं उप जीव्य साहित्य का चिंतन एवं विश्लेषण अत्यावश्यक है।रचना की दृष्टि से काव्य को दो रूपों में विभक्त किया गया है दृश्य और श्रव्य। अर्थात नाटकों का काव्य से सर्वथा स्वतंत्र कोई अस्तित्व नहीं है। काव्य का ही उत्कृष्ट