"हाँ संध्या यह शालिनी ही है, क्या तुम जानती हो इसे?" "हाँ मैं जानती हूँ बहुत ही घमंडी और एकदम तुनक मिजाज़ लड़की है वह। वैभव जब हम नौवीं कक्षा में थे तब यह लड़की किसी दूसरे स्कूल से हमारे स्कूल में आई थी। बहुत ही मगरूर टाइप की लेकिन बहुत ही होशियार, साथ ही उतनी ही ख़ूबसूरत भी । उसे आने के बाद ऐसा लग रहा था कि अब इस क्लास में सिर्फ़ वह ही वह है उसके आगे कोई भी टिक ना पाएगा। यही तो थी उसकी मानसिकता। जिस दिन वह आई थी उस दिन मैं अनुपस्थित थी।