अक्टूबर महीने की गर्मी की विभीषिका को देखकर ऐसा लगा कि मानव अभी भी प्रकृति से बहुत पीछे है। पसीने से शरीर लगभग नहा ही गया था। उफ़ यह जानलेवा गर्मी! मनुष्य अभी बेहतर पूर्वानुमान लगा लेता है। विभिन्न प्रकार के तूफानों का नामकरण भी कर लेता है। साधन-सम्पन्न लोग तो वातानुकूलित यंत्रों का प्रयोग कर अपने को आरामदायक अवस्था में लेकर चले जाते हैं। लेकिन साधनहीन लोग किस प्रकार गर्मी के प्रकोप से अपने को बचाएं? यह प्रश्न तो अनुत्तरित ही रह जाता है। आज के समय की मांग जलवायु संकट को कम करने वाली तकनीक की है। साथ