वह अब भी वहीं है - 8

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भाग - 8 मगर मेरा यह सारा सोचा-विचारा धरा का धरा रह जाता, जब साहब को देखता। इस बीच मैं हर तरह से यह भी जानने में लगा रहा कि आखिर ये करते क्या हैं ? इसी सब में तीन महीने और बीत गए। दूसरे मैं लाख कोशिश करके भी कुछ नहीं बोल सका। तीसरे महिने बाद मैंने पूरा जोर लगाया और एक दिन काम खत्म होने के बाद जब देखा कि, साहब फ़ोन पर किसी से हंस-हंसकर बात कर रहे हैं, तो मुझे लगा कि उनका मूड सही है, आज बात कर ही लूँ । यह सोच कर मैं