वह अब भी वहीं है - 6

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भाग - 6 समीना फिर वह दिन भी आया, जब मेरा मन सेठ के प्रति घृणा से भर गया, और मैं तन्खवाह मिलते ही रात में ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर रफूचक्कर हो लिया। इतनी घृणा इसलिए हुई कि, जिन मजदूरों के साथ मैंने खाया-पिया था, उनमें से एक किसी अनजान-सी बीमारी के कारण देखते-देखते तीन-चार दिन में चल बसा। बाकी मजदूरों के पास उसके संस्कार के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे, तो उन लोगों ने सेठ से उधार मांगा, मगर उसने साफ मना कर दिया। ज़्यादा कहने पर फटकार भी दिया। यह देखकर मैंने अपने पास से जितना हो