मैं तो ओढ चुनरिया - 33

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मैं तो ओढ चुनरिया 33 इस घटना के बाद दस बारह दिन शांति से बीत गये । एक दिन मैं क्लिनिक में बैठी जार से कफसिरप छोटी शीशियों में डाल रही थी । एक दिन की , तीन दिन की , पाँच दिन की खुराकें तैयार हो रही थी कि वह आदमी लपकता हुआ आ टपका – सुन , मेरी दवाई मिली ? हमारे यहाँ दिल की दवाई नहीं मिलती । तुम किसी स्पैस्टलिस्ट के पास जाकर दिखा आओ वरना तकलीफ बढ जाएगी तो मुश्किल में पङ जाओगे । वह कुछ अजीब तरीके से मुस्कराया – पर मुझे