मृग मरीचिका - 3 - अंतिम भाग

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- खंड-3 - यह सब शायद यूँ ही चलता रहता यदि उन दिनों मैं अपनी चचेरी नन्द के घर एक शादी के उत्सव में न जाती, जहाँ एकाएक अनुसुइया भाभी से भेंट हो गई। वैसे उन्हें पहचानना थोड़ा मुश्किल काम था... कहाँ वो उनकी रूप-यौवन और प्रसाधनों से जगमगाती-महमहाती खूबसूरत काया और कहाँ ये मोटी पुरानी साड़ी में लिपटा जीर्ण और आभूषण रहित शरीर... न हाथों में कड़े, न पैरों में पायल, न माथे पर बिंदिया! एक बार तो जी धक् से रह गया... कहीं देवेन्द्र भइया को तो कुछ नहीं हो गया? पर तभी उनकी माँग पर नजर पड़ी