प्रिय मित्रों इस संसार में जो कुछ भी है वह सब हमारे अंदर निहित है सब कुछ हमारे अंदर है यह संसार तो मात्र प्रतिबिंब है जैसा हम देखते हैं जैसी हम दृष्टि रखते हैं यह संसार हमें वैसा ही दिखता है जैसा हम सोचते हैं हमारे साथ वैसा ही होता है जो हम मान लेते हैं वही वास्तविकता बन जाता है इसलिए कहा गया है की यह संसार हमारे आंतरिक संसार का प्रतिबिंब है इसलिए आवश्यकता है हम खुद को जाने हम खुद को पहचाने एक बार खुद को जान लेने के बाद संसार में किसी और को जानने