सरल नहीं था यह काम - 4

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सरल नहीं था यह काम 4 काव्‍य संग्रह स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना 26 बात कहने में बात कहने में ये थोड़ा डर लगें बोल तेरे मुझको तो मंतर लगे स्‍वप्‍न से सुन्‍दर थे उनके घर लगे रहने वाले थे मगर बेघर लगे खौफ ने जब ओठ पर ताले जड़े बोलती ऑंखों में सच के स्‍वर जगे देश में है शोर उन्‍नति का बहुत दिन पर दिन हालात क्‍यों बदतर लगे राम का है शोर भारी देश में जो मिले रावण का ही अनुचर लगे सज गये दिल्‍ली में उन सबके महल राम अपने घर