गुनाहों का देवता - 27

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भाग 27 लेकिन वह नशा टूट चुका था, वह साँस धीमी पड़ गयी थी...अपनी हर कोशिश के बावजूद वह पम्मी को उदास होने से बचा न पाता था। एक दिन सुबह जब वह कॉलेज जा रहा था कि पम्मी की कार आयी। पम्मी बहुत ही उदास थी। चन्दर ने आते ही उसका स्वागत किया। उसके कानों में एक नीले पत्थर का बुन्दा था, जिसकी हल्की छाँह गालों पर पड़ रही थी। चन्दर ने झुककर वह नीली छाँह चूम ली। पम्मी कुछ नहीं बोली। वह बैठ गयी और फिर चन्दर से बोली, ''मैं लखनऊ जा रही हूँ, कपूर!'' ''कब? आजï?'' ''हाँ,