केशव, और रमिया काकी दोनों की नज़रें बाहर लगी हुई थीं। उन्होंने केशव को सुलाने की बहुत कोशिश की। मगर उसकी आँखों में नींद कहाँ थीं। वह यही सोच रहा था, सुबह हो चुकी हैं, अब बापू कभी भी मनोहर को दवाई दिलवा उसे घर ले आएँगे। रमिया काकी को भी नई सुबह के साथ सबकुछ ठीक होने की ही आशा थीं। तभी देखा दो लोग हरिहर को सँभालते हुए चले आ रहें हैं। और दो लोग ठेले को खींचकर ला रहे थे । सबने गौर से देखा, मनोहर बेसुध सा ठेले पर सो रहा था। केशव ने जैसे ही