42 वैसे यह बात करने का सही समय नहीं था परंतु दोनों स्त्रियों के दिल इतने भारी थे कि उनके भीतर की असहनीय संवेदना बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगी | ऐसी घनी पीड़ा सारांश में नहीं उँड़ेली जाती, उनके विस्तार होते हैं, उनमें आहें होती हैं, आँसू होते हैं, सिसकियाँ होती हैं, गिले-शिकवे होते हैं –और भी बहुत कुछ होता है –और उसके बाद होती है सहानुभूति, संवेदनात्मकता और संबल का एहसास व विश्वास !पुण्या ने अपना दिल हल्का करने के लिए समिधा को जो बातें बताईं उनकी कल्पना मात्र से ही समिधा सिहर उठी | कैसा नर्क झेलकर