सहसा कुछ नहीं होता-रक्षा

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सहसा कुछ नही होता-रक्षा स्त्री पीड़ा का अधिकृत आख्यान:सहसा कुछ नही होताराजनारायण बोहरेरक्षा ऐसी कवियत्रीयों में से हैं जो परंपरागत शिल्प और काव्य आधानों पर कविता न लिखकर सर्वथा मौलिक उपादानो और नवीन शिल्प संधान करके कविता लिखती हैं । रक्षा की बड़ी विनम्रता है कि वे खुद को कवयित्री नहीं बताती, अचरज तो यह है कि वर्षों से स्त्रियों और बच्चों के लिए काम करने के बाद भी अपने को समाज सेविका नहीं कहती। ऐसी विनम्र और अहंकारहीना स्त्री कवयित्री की कविताएं बड़े सहज सरल ढंग से पाठकों के सम्मुख आती रही हैं और प्रदेश के अखिल भारतीय मंचों पर उन्हें