राम कथा परंपरा में महावीर चरितम नाटक का औचित्य

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संस्कृत नाटकों के विशाल साहित्य पर जिन गिने चुने नाटककारो के अमिट चरण चिन्ह विद्यमान है उनमें भवभूति अग्रगण्य है विशेषत: राम नाटकों के तो वे प्राण है। उन्हें अलग करके देखे तो राम नाटकों की सुदीर्घ परंपरा निर्जीव सी प्रतीत होती है ।भभूति की आदि नाट्य कृति महावीर चरितम का उप जीव्य स्पष्टत: वाल्मीकि कृत रामायण है। कवि ने इस नाटक के प्रारंभ में आमुख में ही उप जीव्य की स्पष्ट सूचना दे दी हैप्राचेतसो मुनिवृर्षा प्रथम: कवीनामयत पावन : रघुपते प्राणीनाय वृत्तमभक्तस्य तत्र समरसतमेअपि वाच :तत् सुप्रसन्न मनस: कृतिनो भजनताम। महावीर चरितम 1/7इस श्लोक द्वारा न केवल उप