भाग पाँच फिर बरसात का मौसम आ गया | ये मौसम मुझे बहुत भारी पड़ता है | मन घबराता है | एक अनजानी पीड़ा परेशान करती है | बादल के गरजने से भय नहीं लगता | बस जी चाहता है कि मैं भी उनके साथ उड़ूँ ....भागूँ ....दौड़ूँ ...पर मेरे पास पंख कहाँ हैं ? बारिश में प्रिय के साथ भींगने का भी मन होता है पर प्रिय कहाँ ? वही सूना कमरा....अंधेरा....अकेलापन और उदासी ...| खिड़की से वर्षा की बूंदें आकर कमरे को भिंगोती हैं फिर खिड़की भी बंद करनी पड़ जाती है | बाहर का सौंदर्य-बादलों का उमड़ना...बिजली