वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 2

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भाग दो- कभी-कभी अपने ठगे जाने का एहसास मन को उदासियों से भर देता है और एक साथ ही क्रोध, विवशता, मोह, ग्लानि, घृणा जैसे भावों से जूझने लगती हूँ | सोचती हूँ निश्चय ही मुझमें कुछ गंभीर दोष होंगे, जिसके कारण मैं एक असफल जीवन जी रही हूँ | या फिर मैं सचमुच ही इतनी महत्वाकांक्षी हूँ कि कोई मेरा साथ नहीं दे सकता | अपनी महत्वाकांक्षा के बीज बचपन में ढूंढती हूँ | गहरी दृष्टि से निरीक्षण करती हूँ तो देखती हूँ कि मैं बचपन से ही  उपेक्षित, हीन- भावना से ग्रस्त, भयभीत, उदास, निराशावादी लड़की थी, जो