आज माँ से हरेराम काका के कहलगांव में होने की बात सुनी। मन को सुकून मिला। उनका पता बहुत दिनों से नहीं चल रहा था। फोन पर हरेराम काका का हाल निरंतर पूछते रहता हूँ। हमारे भरे-पूर परिवार में एकमात्र उन्ही का ‘अपना’ हमलोगों को छोड़कर और दूसरा कोई नहीं है। एकदम सरल हृदय। दूध-सा मन। मन में कोई बात नहीं रखते। यदि तम्बाकू खाने की भी इच्छा है तो सरपट बोल देते हैं। गाँव जाने पर टमटम या रिक्शा को सुरक्षित करने के लिए उनसे बेहतर और कोई नहीं है। गाँव के एकमात्र बस स्टैंड पर उनका साम्राज्य चलता