अगले दिन, एक कॉफी हाउस में आरजू इत्तेफाकन उस नौजवान से टकरा गई जिसका नाम शहजाद था। आरजू की नजर जब उसपर पड़ी तो उसे अपनी ओर देखता ही पाया। वह अपने टेबल से उठ कर उस ओर चली गई जिधर वह बैठा न जाने कब से उसे ही देखे जा रहा था। "हैलो हैंडसम"--वह उसके समीप जा कर कातिलाना अंदाज में मुस्कराई--"तुम यहां कैसे?" "क्यों मैडम मैं यहां नहीं