उजाले की ओर - संस्मरण

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उजाले की ओर ---संस्मरण -------------------------- वह हवाई-यात्रा बहुत अजीब थी ,अजीब क्या !कभी सोचा ही न था कि इतने ऊपर आकाश में कोई इस प्रकार की सोच या फ़ीलिंग भी हो सकती है ! बात तो कई वर्ष पुरानी है | अगरतल्ला ,आसाम से एक निमंत्रण आया ,कवि-सम्मेलन का ! ख़ुशी इस लिए भी अधिक हुई कि बहुत दिनों से आसाम देखने का मन था | पति अपने काम से जा चुके थे लेकिन इमर्जैंसी में गए थे | वैसे भी काम से जाने पर कभी मैं उनके साथ नहीं गई थी लेकिन जिन मित्रों ने आसाम देखा