(भाग आठ) संघर्ष ही जीवन है-यह मानते हुए मैं आगे बढ़ती गई। छोटे-बड़े स्कूलों में नौकरी की, ट्यूशनें की। घर छोड़कर शहर गयी। किराए के मकानों में रही। बहुत कुछ झेला, गिरी- उठी हारी- जीती पर आखिरकार पी एच डी कर ही लिया। यह अलग बात है कि शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते लेक्चरर न बन सकी। एक मिशनरी कॉलेज में नौकरी मिली और उसी में नौकरी करते ही रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंच गई । इस बीच जो -जो सहा, वह अलग से लिखूंगी। अभी सिर्फ अपने बच्चों की बात करूंगी। बीस वर्ष गुजर गए थे । बच्चों